Wednesday, April 10, 2019

जैन धर्म बना विश्व धर्म


जैन धर्म बना विश्व धर्म : धार्मिक साहित्य का अंतर्राष्ट्रीयकरण
डा. विवेकानंद जैन, वाराणसी
वर्तमान में जैन धर्म के विस्तार एवं अंतर्राष्ट्रीयकरण में ऑनलाइन जैन डिजिटल ई-लाईब्रेरी (www.jainelibrary.com), इण्टरनेशनल दिगम्बर जैन ऑर्गेनाइजेशन (www.idjo.org), तथा इंटरनेट आधारित वेवसाइट का विशेष योगदान है। आज जैन धर्म तथा जैन साहित्य विश्व के 100 से भी अधिक देशों में डिजिटल लाईब्रेरी तथा इण्टरनेट के माध्यम से पहुंच रहा है अत: इण्टरनेट तथा धार्मिक टी.वी. चैनल भी जैनधर्म के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
जैन डिजिटल लाईब्रेरी: मैंने व्यक्तिगत रूप में जैन ई-लाइब्रेरी को जैन साहित्य की सामग्री के लिये बहुत ही उपयोगी पाया। यह लगातार विकास की ओर अग्रसर है। इस में हमेशा नयी सामग्री जुड़ती रहती है साथ ही नये नये उपयोगकर्ता भी देश विदेश से जुड़ते रहते हैं। इसके अलावा इण्टर्नेशनल दिगम्बर जैन ऑर्गेनाइजेशन की वेवसाइट भी बहुत उपयोगी है। इस पर भी ई-बुक्स उपलब्ध हैं।  
  


डिजिटल लाईब्रेरी ऑफ इण्डिया
इस वेवसाइट के माध्यम से अनेक ऐतिहासिक महत्व के धार्मिक, सामाजिक ग्रंथो को प्राप्त किया जा सकता है। इस पर उपलब्ध ग्रंथ नि:शुल्क हैं जिन्हें ऑनलाइन पढ़ा तथा आवश्यकतानुसार डाउनलोड भी किया जा सकता है। इस हेतु निम्न वेवसाइट देखें:  www.dli.gov.in or www.dli.ernet.in

इण्टर्नेट आरकाईव्स (https://archive.org/) : यह सभी प्रकार की डिजिटल सामग्री के लिये बहुत ही उपयोगी वेवसाइट है। इस पर भी जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथ उपलब्ध हैं।


निष्कर्ष : जैन धर्म के सिद्दांतों को विश्व पटल पर लाने में आधुनिक सूचना तकनीकि का विशेष योगदान है। आज सूचना तकनीकि के प्रभाव से जैन धर्म सही मायने में विश्व धर्म बन गया है, जो कार्य धर्म के प्रचारक सदियों में नहीं कर सके, बह कार्य इण्टरनेट ने कर दिखाया।  
From: Dr. Vivekanand Jain, Deputy Librarian, Banaras Hindu University, Varanasi -221005 mob. 9450538093


No comments:

Post a Comment