खुशी का मूल्यांकन : हैप्पीनेस
इंडेक्स
भारतीय जीवन पद्धति
उत्सव एवं उल्लास
के साथ जिंदगी जीने की कला सिखाती है। “सर्वे भवंतु सुखना” की सोच लेकर हमें जीवन
में आगे वढ़ना चाहिये। सभी की खुशी के लिये कार्य करना चाहिये। भारतीय संस्कृति में
जरूरत से ज्यादा संग्रह करने बाले का नहीं बल्कि त्यागमय जीवन जीने बाले व्यक्ति
को मह्त्व दिया जाता है। आधुनिक समय में खुशियों को भी हैप्पीनेस इंडेक्स से मापा
जाने लगा है। इसी पर मैं अपने विचार कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूं।
खुशियां बांटने से बढ़ती हैं, आइडिया भी बांटने से बढ़ता है।
लेकिन
जीवन का गणित उल्टा है,
यहां जोड़ने से नहीं
बल्कि
कुछ भी घटाओ,
इसी से हैप्पीनेस इंडेक्स बढ़ता है
क्योंकि
भारतीय संस्कृति में संग्रह नहीं त्याग महत्वपूर्ण है।
हमें चाहिये कि अपने लिये नहीं परिवार के लिये
कुछ करें,
अपने लिये नहीं समाज के लिये कुछ करें,
अपने लिये नहीं देश और दुनिया के लिये कुछ करें,
जिससे
पुन: बसुधैव कुटुम्बकम का सपना साकार हो।
अच्छे
विचारों से हैप्पीनेस इंडेक्स बढेगा।
सकारात्मक
सोच से हैप्पीनेस इंडेक्स बढेगा।
सबको
साथ लेकर चलोगे तो हैप्पीनेस इंडेक्स बढेगा
जमीन से जुड़े रहोगे, अपनों से मिलते
रहोगे तो
जीवन में हैप्पीनेस इंडेक्स अवश्य बढेगा ॥
जिंदगी की भागदौड़ में रुककर स्वमूल्यांकन भी
जरूरी है अत:
खुद को खुद के अंदर सर्च करो, कभी अपने ऊपर भी
रिसर्च करो।
बच्चों में जैसे संस्कार डालोगे, परिणाम भी उसी अनुरूप
आयेगा
वरना, स्कूल
की फीस के बदले,
बच्चे बृद्धाश्रम की फीस भर देंगे।
आजकल लोग कामयाबी के पीछे जिंदगी भर दौड़ते रहते
हैं। इसी पर डा. अनेकांत जैन ने लिखा था :
कुछ लोगों को कामयाबी में सुकून नजर आया
और बह दौड़ते ही चले गये।
हमें सुकून में कामयाबी नजर आयी, और हम ठहर गये।
शहरों के फ्लेट
सिस्टम में
मनुष्य अधर में लटका
है, ना छत अपनी ना जमीन अपनी,
फिर भी बाईफाई से देश और दुनिया से जुड़ा हुआ
है
और एक क्लिक में सभी से ऑनलाइन सम्बंध बनाये
है।
इसी में लाइक देखकर खुश भी हो जाता है। क्या
यह नयी हैप्पीनेस है?
आज से कई वर्ष पूर्व
हिंदी के राष्ट्र कवि श्री मैथली शरण गुप्त ने एक कविता
लिखी थी जिसका
शीर्षक है : नर हो न निराश करो मन को
यह रचना आज भी हम सभी
के लिये प्रेरणादायी है :
नर हो,
न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो, यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो, कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को, नर हो, न निराश करो मन को॥
जग में रह कर कुछ नाम करो, यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो, कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को, नर हो, न निराश करो मन को॥
इसी कड़ी में एक और प्रेरणादायक कविता है:
लहरों से डरकर नौका पार नहीं
होती, कोशिश करने बालोंं की कभी हार नहीं होती…
कुछ किये बिना ही जय जयकार
नहीं होती, कोशिश करने बालोंं की कभी हार नहीं होती॥ (kavitakosh.org)
अत: हमें कभी भी जीवन में
निराश नहीं होना चाहिये बल्कि हमेशा प्रयास जारी रखना चाहिये, एक ना एक
दिन सफलता अवश्य मिलेगी। अत: हमेशा मस्त रहो, स्वस्थ्य रहो,
खुशियां बांटो, और जीवन का आनंद लो। हैप्पीनेस
इंडेक्स की चिन्ता मत करो यह तो स्वत: बहुत ऊपर चला जायेगा।
हमारे भारत देश का दिल आज
भी गांव में बसता है। गांव का जीवन आज भी मिलनसार अपनेपन को लिये हुये है। अब गांव
से शहरों की ओर पलायन नहीं बल्कि शहरों से गांव की ओर हेप्पीनेस के लिये
जाना होगा ।
द्वारा : विवेकानंद जैन
वाराणसी मो. 94505 38093