Saturday, November 21, 2020

Shraddhanjali to Shri Baboo Lal Jain Sudhesh




दिगौड़ा में श्रद्धांजली सभा 






 बुंदेली कवि एवम शिक्षक श्री बाबूलाल जी जैन सुधेश का 30 अगस्त 2020 को ग्राम दिगौड़ा में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होने टीकमगढ़ जिले के अनेक विद्यालयों में अध्यापन किया। जिनमें अहार, मबई, दिगौड़ा, बम्हौरी, खरगापुर, मालपीथा, नुना, लिधौरा आदि शामिल हैं। उनका एक कविता संग्रह स्वतंत्र रचनावली नाम से प्रकाशित है। आप हमेशा सामाजिक एवम धार्मिक कार्यों में सम्मलित होते रहे। आज हम सभी उनको श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। 


बुंदेली रचना महुआ है बुंदेली मेवा : द्वारा श्री Baboo Lal Jain

बुंदेली कवि एवम शिक्षक श्री बाबूलाल जी जैन सुधेश का 30 अगस्त 2020 को ग्राम दिगौड़ा में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनकी यह बुंदेली रचना "महुआ है बुंदेली मेवा" ब्लोग पर प्रकाशित कर रहे हैं। 



महुआ है बुंदेली मेवा

 

महुआ है बुंदेली मेवा

दीन हीन जन का प्रतिपालक, करत बहुत ही सेवा

महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

कामधेनु सम कल्पवृक्ष यह, महुआ जिसका नाम।

पत्ते फूल और फल इसके, सब अंग आवें काम ॥

नहीं कोई इसके सम देवा, महुआ है बुंदेली मेवा ||

 

मुरका लटा मिठाई इसकी, डुबरी फूली दाखें,

हरछट के दिन चना चिरोंजी, संग मिल इसको खावें।

पूजन में संग इसको लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा

 

फोड़ गुली को बनते धपरा, तेल निकलता उनसे ।

खाते और बनाते साबुन, जम जाता घृत जैसे॥

बेचकर वस्त्र स्वर्ण लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा

 

पत्ते भी बन जाते इसके, बकरी का भोजन।

काट टहनियां जला रहे हैं, कुछ इसको दुर्जन ॥

प्रभू जी इनको समझ देवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

गुली फलक तो रसगुल्ले सम, पशु जन के मन भावें,

लपकी गाय गुलेंदर खाने, महुये तर पुनि पुनि जावे।

बच्चे बीनत करत कलेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

वृक्ष कभी यदि उखड़ जाये, तो लकड़ी आती काम।

फाटक खिड़की चौखट आदिक, बनकर शोभित धाम॥

करत यह भारी जन सेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

अटा अटारी की पटनोरें, करी मियारी बनतीं।

पलंग पीठिका बेंड़ा खूंटी, मजबूती बहु धरती॥

लकड़ी बहुत काम में लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

पशु पक्षी छाया में इसकी, नीढ़ बनाकर रहते।

साधू संत कोटर में बैठे, कठिन तपस्या करते॥

गाते शुक मैना व परेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

मधु के हैं भण्डार किंतु जन मद्यपान में लेते ।

औषधि जीवन हेतु वैद्य दें, पर कुछ विष सम सेते॥

इसमें किसे दोष हम देवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

महुआ है बुंदेली मेवा, दीन हीन जन का प्रतिपालक,

करत बहुत ही सेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

प्रेषक :

डा. विवेकानंद जैन पुत्र श्री बाबूलाल जैन

दिगौड़ा टीकमगढ़ मध्यप्रदेश

मो. 9450538093